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यद् ग्रामे॒ यदर॑ण्ये॒ यत्स॒भायां॒ यदि॑न्द्रि॒ये। यच्छू॒द्रे यदर्ये॒ यदेन॑श्चकृ॒मा व॒यं यदेक॒स्याधि॒ धर्म॑णि॒ तस्या॑व॒यज॑नमसि ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। ग्रामे। यत्। अर॑ण्ये। यत्। स॒भाया॑म्। यत्। इ॒न्द्रि॒ये। यत्। शू॒द्रे। यत्। अर्ये॑। यत्। एनः॑। च॒कृ॒म। व॒यम्। यत्। एक॑स्य। अधि॑। धर्म॑णि। तस्य॑। अ॒व॒यज॑न॒मित्य॑व॒ऽयज॑नम्। अ॒सि॒ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (वयम्) हम लोग (यत्) जो (ग्रामे) गाँव में (यत्) जो (अरण्ये) जङ्गल में (यत्) जो (सभायाम्) सभा में (यत्) जो (इन्द्रिये) मन में (यत्) जो (शूद्रे) शूद्र में (यत्) जो (अर्ये) स्वामी वा वैश्य में (यत्) जो (एकस्य) एक के (अधि) ऊपर (धर्मणि) धर्म में तथा (यत्) जो और (एनः) अपराध (चकृम) करते हैं वा करनेवाले हैं (तस्य) उस सबका आप (अवयजनम्) छुड़ाने के साधन हैं, इससे महाशय (असि) हैं ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि कभी कहीं पापाचरण न करें, जो कथंचित् करते बन पड़े तो उस सब को अपने कुटुम्ब और विद्वान् के सामने और राजसभा में सत्यता से कहें। जो पढ़ाने और उपदेश करनेहारे स्वयं धार्मिक होकर अन्य सब को धर्माचरण में युक्त करते हैं, उनसे अधिक मनुष्यों को सुभूषित करनेहारा दूसरा कौन है ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) (ग्रामे) (यत्) (अरण्ये) जङ्गले (यत्) (सभायाम्) (यत्) (इन्द्रिये) मनसि (यत्) (शूद्रे) (यत्) (अर्ये) स्वामिनि वैश्ये वा (यत्) (एनः) (चकृम) कुर्मो वा करिष्यामः (वयम्) (यत्) (एकस्य) (अधि) (धर्मणि) (तस्य) (अवयजनम्) दूरीकरणसाधनम् (असि) ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! वयं यद् ग्रामे यदरण्ये यत्सभायां यदिन्द्रिये यच्छूद्रे यदर्य्ये यदेकस्याधि धर्म्मणि यदेनश्चकृम, तस्य सर्वस्य त्वमवयजनमसि, तस्मान्महाशयोऽसि ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः कदाचित् क्वापि पापाचरणं नैव कर्त्तव्यम्, यदि कथंचित् क्रियेत तर्हि तत्सर्वं स्वकुटुम्बविद्वत्सन्निधौ राजसभायां च सत्यं वाच्यम्। येऽध्यापकोपदेशकाः स्वयं धार्मिका भूत्वाऽन्यान् सम्पादयन्ति, तेभ्योऽधिकः को भूषकः परः ॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी कधीही केव्हाही पापाचरण करून नये. जर एखाद्या वेळी हातून पाप घडले तर आपला परिवार, विद्वान व राज्यसभा यांच्यासमोर सत्य कबूल करावे. धार्मिक अध्यापक व उपदेशकांनी सर्वांना धर्माचरणात युक्त करावे. कारण माणसांना त्यांच्यापेक्षा सुसंस्कारित करणारे कोण बरे असू शकेल?